रास बिहारी घोष
(1845-1921)
जन्म : 23 दिसम्बर 1945 वर्धमान, पश्चिम बंगाल
शिक्षा : वर्धमान राज कॉलेजिएट स्कूल, प्रेसीडन्सी कॉलेज कोलकात्ता
निधन : 28 फरवरी 1921
जीवन परिचय : रास बिहारी घोष का जन्म पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा वर्धमान राज कॉलेजिएट स्कूल में हुई। इसके बाद सन 1865 में प्रेजीडेन्सी कॉलेज कोलकात्ता से स्नातक की शिक्षा पूर्ण की। इसके एक वर्ष पश्चात इन्होंने एम.ए. (अंग्रेजी) की परीक्षा प्रथम श्रेणी ऑनर्स के साथ पास की। ऐसा करने वाले वे भारत के प्रथम व्यक्ति थे।
सन 1867 में कानून से स्नातक करने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट मे वकालत करने लगे। इसके चार वर्ष पश्चात इन्होंने कानून के ऑनर्स की परीक्षा पास की जो कि उस समय विश्व के सबसे कठिनतम परीक्षाओं में एक थी। सन 1861 में उन्हे ''कानून के डॉक्टरेट'' की उपाधि मिली।
सन 1875 में उन्होने कलकत्ता विश्वविद्यालय के 'टैगोर लॉ चेयर' का पद सँभाला। वे दो बार सन 1891-94 तथा 1906-09 तक बंगाल विधान परिषद् के सदस्य रहे। वे सन 1891 और 1893 में भारतीय राज्यपरिषद् सचिव के सदस्य रहे। इस दौरान उन्होने कानून लागू करने में अपना योगदान दिया। एक ऋण मामले में अदालत की बिक्री से संबधित था। तथा दूसरा पूर्व-उत्सर्जन के कानून से संबंधित था।
रास बिहारी घोष को ब्रिटिश सरकार द्वारा सन 1896 में ''कम्पेनियन ऑफ द ऑडर ऑफ द इंडियन अम्पायर ( companion of the order of the indian empire)'' तथा सन 1909 में '' कम्पेनियन ऑफ द ऑडर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया (companion of the order of the star of india)'' की उपाधि दी गई।
सन 1906 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के 'टाउन हॉल' में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में स्वागत समिति के अध्यक्ष बने। इसके अगले वर्ष सन 1907 में कॉग्रेस के सूरत अधिवशन की अध्यक्षता की। यह अधिवेशन हंगामें के साथ समाप्त हुआ। इसके बाद पुन: सन 1908 के मद्रास के अधिवेशन की अध्यक्षता की ।
रास बिहारी घोष गोखले के राजनैतिक जीवन से बहुत प्रभावित थे उन्होने गोखले की भारत में प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता का उत्साह के साथ समर्थन किया। स्वदेशी आन्दोलन के दौरान उन्होने भारतीय शिक्षा का समर्थन किया और वे सन 1906 में राष्ट्रीय शिक्षा समिति के प्रथम अध्यक्ष बने। (1906-21)
उन्होने स्वदेशी आन्दोलन के विषय में कहा कि ''हमारा उदेश्य विदेशियों से नफरत करना नहीं बल्कि भारत से प्रेम करना है।''
उन्होने भारत में ब्रिटिश शासन को एक आर्शीवाद के रूप में देखा और उन्हें ब्रिटेन पर बहुत विश्वास था। उन्होने कहा कि '' मैं कभी सोच भी नहीं सकता'' उन्होने कहा '' इग्लैंड कभी भी अपने कदम पीछे खींच लेगा या भारत के लिए अपना कर्तव्य भूल जायेगा।''
मुख्य बिन्दु :
#rasbhiharighosh #freedomfighter
(1845-1921)
जन्म : 23 दिसम्बर 1945 वर्धमान, पश्चिम बंगाल
शिक्षा : वर्धमान राज कॉलेजिएट स्कूल, प्रेसीडन्सी कॉलेज कोलकात्ता
निधन : 28 फरवरी 1921
जीवन परिचय : रास बिहारी घोष का जन्म पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा वर्धमान राज कॉलेजिएट स्कूल में हुई। इसके बाद सन 1865 में प्रेजीडेन्सी कॉलेज कोलकात्ता से स्नातक की शिक्षा पूर्ण की। इसके एक वर्ष पश्चात इन्होंने एम.ए. (अंग्रेजी) की परीक्षा प्रथम श्रेणी ऑनर्स के साथ पास की। ऐसा करने वाले वे भारत के प्रथम व्यक्ति थे।
सन 1867 में कानून से स्नातक करने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट मे वकालत करने लगे। इसके चार वर्ष पश्चात इन्होंने कानून के ऑनर्स की परीक्षा पास की जो कि उस समय विश्व के सबसे कठिनतम परीक्षाओं में एक थी। सन 1861 में उन्हे ''कानून के डॉक्टरेट'' की उपाधि मिली।
सन 1875 में उन्होने कलकत्ता विश्वविद्यालय के 'टैगोर लॉ चेयर' का पद सँभाला। वे दो बार सन 1891-94 तथा 1906-09 तक बंगाल विधान परिषद् के सदस्य रहे। वे सन 1891 और 1893 में भारतीय राज्यपरिषद् सचिव के सदस्य रहे। इस दौरान उन्होने कानून लागू करने में अपना योगदान दिया। एक ऋण मामले में अदालत की बिक्री से संबधित था। तथा दूसरा पूर्व-उत्सर्जन के कानून से संबंधित था।
रास बिहारी घोष को ब्रिटिश सरकार द्वारा सन 1896 में ''कम्पेनियन ऑफ द ऑडर ऑफ द इंडियन अम्पायर ( companion of the order of the indian empire)'' तथा सन 1909 में '' कम्पेनियन ऑफ द ऑडर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया (companion of the order of the star of india)'' की उपाधि दी गई।
सन 1906 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के 'टाउन हॉल' में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में स्वागत समिति के अध्यक्ष बने। इसके अगले वर्ष सन 1907 में कॉग्रेस के सूरत अधिवशन की अध्यक्षता की। यह अधिवेशन हंगामें के साथ समाप्त हुआ। इसके बाद पुन: सन 1908 के मद्रास के अधिवेशन की अध्यक्षता की ।
रास बिहारी घोष गोखले के राजनैतिक जीवन से बहुत प्रभावित थे उन्होने गोखले की भारत में प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता का उत्साह के साथ समर्थन किया। स्वदेशी आन्दोलन के दौरान उन्होने भारतीय शिक्षा का समर्थन किया और वे सन 1906 में राष्ट्रीय शिक्षा समिति के प्रथम अध्यक्ष बने। (1906-21)
उन्होने स्वदेशी आन्दोलन के विषय में कहा कि ''हमारा उदेश्य विदेशियों से नफरत करना नहीं बल्कि भारत से प्रेम करना है।''
उन्होने भारत में ब्रिटिश शासन को एक आर्शीवाद के रूप में देखा और उन्हें ब्रिटेन पर बहुत विश्वास था। उन्होने कहा कि '' मैं कभी सोच भी नहीं सकता'' उन्होने कहा '' इग्लैंड कभी भी अपने कदम पीछे खींच लेगा या भारत के लिए अपना कर्तव्य भूल जायेगा।''
मुख्य बिन्दु :
- सन 1875 में '' टैगोर लॉ चेयर'' का पद सँभाला।
- वे दो बार सन 1891-94 तथा सन 1906-09 तक बंगाल विधान परिषद् के सदस्य रहे।
- रास बिहारी घोष दो बार भारतीय राज्य परिषद् सचिव के सदस्य रहे। (1891 तथा 1893)
- सन 1906 में कलकत्ता के भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में स्वागत समिति के अध्यक्ष बने।
- उन्होने दो बार लगातार भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की। (सन 1907 में सूरत तथा सन 1908 में मद्रास )
- गोखले के राजनीतिक जीवन से बहुत प्रभावित थे।
- सन 1906 में राष्ट्रीय शिक्षा समिति (national council of education) के प्रथम अध्यक्ष बने ।
- रास बिहारी घोष को अंग्रेजो की न्याय व्यवस्था पर पूर्ण विश्वास था।
- वे कलकत्ता विश्वविद्यालय से जुडे़ हुऐ थे। सन 1887-1899 तक वह सिंडिकेट के सदस्य रहे।
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