सुभाष चन्द्र बोस (1897-1945)
जन्म: 23 जनवरी 1897 कटक, बंगाल प्रेसीड़ेन्सी का ओडिशा डिवीजन
पत्नी: एमिली शेंकल ( Emilie Schenkl)
पुत्री: अनीता बोस
शिक्षा: बी.ए. ऑनर्स कलकत्ता विश्वविद्यालय से
जीवन परिचय: नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक शहर में हुआ था । उनके पिता का नाम जानकी नाथ बोस मॉं का नाम प्रभावती था । जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे । वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था।
सुभाष चन्द्र बोस की प्राथमिक शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेण्ट स्कूल से की । मात्र पंन्द्रह वर्ष की आयु में ही उन्होने विवेकानन्द साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। 1915 में उन्होंने इण्टरमीडिएट की परीक्षा दितीय श्रेणी मे पास की । 1916 में जब वे दर्शनशास्त्र में बीए के छात्र थे उसी समय प्रेसीडे़न्सी कॉलेज के अध्यापकों तथा छात्रों के बीच झगड़ा हो गया छात्रो के अध्ययक्ष होने के कारण उन्हें प्रेसीडे़न्सी कॉलेज से एक वर्ष के लिए निलंबित कर दिया गया। फिर उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश ले लिया किन्तु उनका मन सेना में जाने का था। खाली समय का उपयोग करने के लिए उन्होंने टेरिटोरियल आर्मी की परीक्षा दी और फॉर्ट विलियम सेनालय में रँगरूट के रूप में भर्ती हो गये । सन 1919 में बीए ऑनर्स की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था।
सुभाष के पिता चाहते थे कि वे आईसीएस बनें लेकिन उनकी आयु के चलते वे परीक्षा में एक बार ही बैठ सकते थे । सुभाष ने विचार करने के बाद परीक्षा देने का फैसला कर लिया और 15 सितंबर 1919 को इग्लैंड़ चले गये । सन 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान हासिल करते हुए आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की।
कुछ समय पश्चात उन्होंने स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शो को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस पद को त्याग करने का मन बना लिया और 22 अप्रेल 1921 को भारत सचिव ई.एस.मोन्टेग्यू को आईसीएस से त्याग देने के लिए पत्र लिखा। जून 1921 में वे स्वदेश लौट आये।
कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी देशबन्धु चितरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर सुभाष उनके साथ कार्य करना चाहते थे। इंग्लैंण्ड से उन्होंने दासबाबू को खत लिखकर उनके साथ काम करने की इच्छा प्रकट की। रविन्द्रनाथ ठाकुर की सलाह के अनुसार भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम मुम्बई गये और वहॉं पर गॉंधी जी के निवास स्थान मणिभवन में 20 जुलाई 1921 को गॉंधी जी से पहली बार मिले ।
उन दिनों गॉंधी जी ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। चितरंजन दास इस आंदोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे । उनके इस आंदोलन में सुभाष भी सहभागी हो गये । सन 1922 में चितरंजन दास ने कॉंग्रेस के अंतर्गत स्वराज्य पार्टी की स्थापना की । विधानसभा के अंदर से अंग्रेज सरकार का विरोध करने के लिए कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज्य पार्टी ने लड़कर जीता और चितरंजन दास कोलकाता के महापौर बन गये। उन्होंने सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी बनाया। इसी दौरान सुभाष देश के एक युवा नेता के रूप में उभरे ।
जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाष ने कांग्रेस के अन्तर्गत युवको की इण्डिपेण्डेंस लीग शुरू की। सन 1927 में जब साईमन कमीशन भारत आया तब कॉंग्रेस ने उसे काले झण्ड़े दिखाये। कोलकाता में सुभाष ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को जवाब देने के लिए काँग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा। मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष और सुभाष उसके सदस्य थे । इस आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की।
सन 1930 में जब सुभाष कारावास में थे तब उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया । इसलिए अंग्रेज सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा। सन 1932 में उन्हें फिर से कारावास करना पड़ा। इस बार उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया । अल्मोड़ा जेल में उनकी तबियत फिर से खराब हो गयी । चिकित्सकों की सलाह पर सुभाष इस बार इलाज के लिए यूरोप जाने को तैयार हो गये। सन 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे।
इसी दौरान (सन 1934में) जब वे अपना इलाज ऑस्ट्रिया में इलाज करा रहे तभी उनकी मुलाकात एक ऑस्ट्रियन महिला एमिली शेंकल(Emilie Schenkl) से हुई। एक दूसरे से प्रेम होने के कारण उन्होंने सन 1942 में बाड गास्टिन नामक स्थान पर हिन्दू विवाह पद्धति से विवाह रचा लिया। विवाहेत्तर उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम अनीता बोस रखा गया।
1943 में सुभाष के पिता की मृत्यु हो गयी जिसकी खबर सुनते ही वे हवाई जहाज से कराची होते हुए कोलकाता लौटे। कोलकाता पहुँचते ही अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और कई दिनों तक जेल में रखने के बाद उन्हें वापस यूरोप भेज दिया।
सन 1938 के काँग्रेस के 51वें अधिवेशन (हरिपुरा, गुजरात) में सुभाष चन्द्र बोस को कॉंग्रेस का अध्यक्ष चुना गया । अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सुभाष ने योजना आयोग की स्थापना की। जवाहरलाल नेहरू इसके पहले अध्यक्ष बनाये गये। सुभाष ने बंगलौर में मशहूर वैज्ञानिक सर विश्वैश्वरय्या की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद की स्थापना भी की।
सन 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन के पश्चात गॉंधी जी तथा कॉंग्रेस के विचारों से तंग आकर 29 अप्रेल 1939 को सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
3 मई 1939 को सुभाष ने कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद सुभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक अपने आप में एक स्वतन्त्र पार्टी बन गई।
अगले वर्ष जुलाई में कलकत्ता स्थित हालवेट स्तम्भ जो भारत की गुलामी का प्रतीक था सुभाष की युवा ब्रिगेड ने रातोंरात वह स्तम्भ मिट्टी में मिला दिया। इसके परिणामस्वरूप अंग्रेज सरकार ने सुभाष सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सुभाष जेल में निष्क्रिय रहना नहीं चाहते थे। वे सरकार को उन्हें रिहा करने के लिये मजबूर करना चाहते थे इसलिए उन्होने जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। हालत खराब होते ही सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। लेकिन अंग्रेजी सरकार उन्हें युद्ध के समय मुक्त नहीं रखना चाहती थी इसलिए सरकार ने उन्हें उनके ही घर पर नजरबन्द कर दिया।
16 जनवरी 1945 को नज़रबन्दी से बचते हुए एक पठान के वेश में अपने घर से बच निकले और फ्रण्टियर मेल पकड़कर वे पेशावर पहुँचे। भगतराम तलवार के साथ वे पेशावर से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर पैदल निकल पड़े। काबुल से आरलैण्डो मैजोन्टा नामक इटैलियन व्यक्ति बनकर सुभाष रूस की राजधानी मॉस्को होते हुए जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुँचे।
उन्होने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन तथा आजाद हिन्द रेडियो की स्थापना की। 29 मई 1942 के दिन सुभाष की मुलाकात एडॉल्फ हिटलर से हुई। लेकिन हिटलर को भारत के विषय में कोई विषेश रूचि नहीं थी। जब सुभाष को पता चला कि उन्हें जर्मनी और हिटलर से कुछ नहीं मिलने वाला इसलिए 8 मार्च 1943 को जर्मनी के कील बंदरगाह से अपने मित्र आबिद हसन सफरानी के साथ एक जर्मन पनडुब्बी में बैठकर पूर्वी एशिया की ओर निकल पडे़ । वह पनडुब्बी उन्हें हिन्द महासागर में मैडागास्कर के किनारे तक लेकर गयी। वहां से वे जापानी पनडुब्बी में बैठकर इंडोनेशिया के पादांग बंदरगाह तक पहुँच गये।
पूर्वी एशिया पहुँचकर वे सर्वप्रथम क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से मिले और सिंगापुर के एडवर्ड पार्क में रासबिहारी बोस ने स्वेच्छा से स्वतंत्रता परिषद् का नेतृत्व सुभाष को सौंपा था।
21 अक्टूबर 1943 के दिन नेताजी ने स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार (आर्जी-हुकुमते-आज़ाद-हिन्द) की स्थापना की । वे खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने। इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता दी। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बने।
आजाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजो की फौज से पकड़े हुए भारतीय युद्धबंदियों को भर्ती किया था। आज़ाद हिन्द फौज में औरतों के लिए झॉंसी की रानी रेजीमन्ट भी बनाई गयी।
पूर्वी एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण देकर वहां भारतीय लोगो से आजाद हिन्द में भर्ती होने तथा आर्थिक मदद करने का आवाहन किया । उन्होने ''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।'' जैसे कथनो से लोगों को उत्साहित किया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रोत्सहित करने के लिए नेताजी ने ''दिल्ली चलो'' का नारा दिया। दोनों फौज (जापानी सेना एवं आजाद हिन्द फौज) ने अंग्रेजो से अंडमान एवं निकोबार द्वीप जीत लिये । नेताजी ने इन द्वीपों के नाम ''शहीद द्वीप'' और 'स्वराज्य द्वीप' रखा था।
6 जुलाई 1944 को आजाद हिन्द रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गॉंधी जी को सम्बोधन में जापान से सहायता लेने और आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया । इस भाषण के दौरान नेताजी ने गॉंधी जी को राष्ट्रपिता कहा तभी गांधीजी ने भी उन्हे नेताजी कहा।
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था। उन्होने रूस से सहायता मॉंगने का निश्चय किया था। 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गये । इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिये।
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